सत्य नारायण तायल,
द्वापर म तु, जन्मयो कान्हा ! बडिया करयो
नही तो, कलियुग म, तेर साग आ होती
तेर हाथ म, स्टोन के बदल
आज अँखिया की बोली होती
और ब्रज की गोपी क बदल,
तेर बगलम्, मिस युनिवर्स और मिस वर्ल्ड कि टोली
होती
और बचपन का ग्वाल–बाल क बदल
नेता कि टोली होती
दूध–दही कि तन, चोरी कोनी करनी पड़ती
दायरो इसको, बड़ जातो
घुस भ्रष्टाचार को बोल बालो हो तो
घोटाला को हो तो अम्बार
गगरी फोडन कंकर युज कोनी करतो
खाद्य–पदार्थ कि, मिलावट म आ जाता काम
नाप तेरी, इच्छा स्यूँ देतो
जद पेकेट प वेन पेकड लिख देतो
दूध–दही माखन कि नदियाँ
अब डब्बा पेकेट और पोच म खोजन पडतो
दुध–दही–माखन के बदल
अब तन, व्हीसकी बियर और ड्रग्स म रमणो पड़तो
अरे पासों को जुवो तो पुरानो पड़ग्यो
तास कि पती स्यूं– काम चलानो पड़तो
आज कोरव और पाण्डव क लिए
फेर एक नयो केसिनो खुलवानो पडतो
द्रोपती अगर आजकी द्रोपत्या क बराबर का कपड़ा
पेहरयाँ होती
तो चिर–हरण ही, क्यों करनो पड़लो
काली नाग प, ता थैया–ता थैया क बदल
होटला म केबेरे तन करनो पड़तो
बन सारथी तन, रथ म कोनी बैठनो पड़तो
बस घर म बैठ, बटन एक दबानो पड़तो
धूम–धडाम और सब खतम
अरे बोल्यो नी धुम– धडाम सब खतम
अब तो बाजाओ ताली
द्वापर म तु जन्मयो कान्हा बडिया करयो
नही तो ओ सब तन्ही तो करतो पड़तो
द्वापर म तु जन्मयो कान्हा बडिया करयो
नही तो ओ सब तन ही तो भुगतनो पडतो
भद्रपुर–५